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आसनों से आरोग्य लाभ
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आसनों से आरोग्य लाभ

शारीरिक स्वास्थ्य को सुधारने की दृष्टि से किये जाने वाले आसनों को मुखयतया चार वर्गों में बांट सकते हैं - १. शरीर के विभिन्न अंगों के खिंचाव प्रधान आसन, २. प्राणायाम सहित किये जाने वाले आसन, ३. शारीरिक बल और शक्ति बढ़ाने वाले आसन, ४. शरीर के स्नायु-संस्थानों के संचालन में सहायक आसन। परंतु उक्त वर्गीकरण केवल लोगों को सुविधापूर्वक समझाने के लिए है। व्यावहारिक दृष्टि से ऐसा कोई आसन नहीं जो उक्त वर्गीकरणों में से केवल एक विधा में फिट हो सके। वास्तव में योग का हर आसन हमारे लिए अनेक दृष्टियों से लाभप्रद है और उसे उक्त वर्गो में से कई वर्गों में सम्मिलित किया जा सकता है। हर आसन की अपनी खास विद्गोषता होती है। किंतु उसके अलावा भी वह कई प्रकार का लाभ देता है। द्गारीर और मन दोनों के आरोग्य लाभ में सहायक होता है।

यहां एक बात और स्पष्ट रूप से समझ लेनी चाहिए कि आसनों के उपयोग से मनुष्य के आध्यात्मिक, मानसिक व शारीरिक उन्नति का मार्ग प्रशस्त होता है। ध्यान रहे, आसनों का अभ्यास करने के पूर्व शौचादि से निवृत्त होकर पेट को पूरी तरह साफ कर लेना आवश्यक है। आसन करते समय अधिक कपड़े पहनना असुविधाजनक हो जाता है। अतः कम से कम वस्त्र धारण करना चाहिए। हो सके तो केवल कच्छा और बनियान पहनना चाहिए। अगर मौसम अत्यधिक ठंडा हो तो ढीले-ढाले वस्त्र धारण किये जा सकते हैं। योग साधिकाएं सलवार-कमीज धारण कर सकती हैं।

आसन करने का स्थान स्वच्छ, सीलन रहित, समतल और हवादार भी होना चाहिए। आसन करने का समय प्रातःकाल सर्वश्रेष्ठ माना गया है, लेकिन सुविधानुसार इस नियम में कुछ बदलाव भी लाया जा सकता है। किन्तु किसी भी हालत में भोजन करने के बाद श्रमसाध्य आसनों का अभ्यास नहीं करना चाहिए। यदि शारीरिक अस्वस्थता हो, बुखार हो तो आसन का अभ्यास वर्जित है। गर्भावस्था में भी आसनों का अभ्यास छोड़ देना चाहिए अन्यथा गर्भ में विकार आ जाने की संभावना रहती है। मार्ग दर्शक की सलाह पर गर्भवती महिलाएं कुछ वैसे साधारण आसन कर सकती हैं जो गर्भस्थ शिशु व माता के लिए हानिकर न हों। चुस्त कपड ों का इस्तेमाल आसन-अभ्यास के उपयुक्त नहीं होता।

आसन करने के बाद कम से कम एक घंटा तक किसी भी प्रकार का भोजन नहीं करना चाहिए। एक घंटा बाद ही सुबह का नाश्ता किया जा सकता है। यदि नाश्ते में केवल दूध लिया जाये तो अति उत्तम है। मिर्च मसाले से परहेज करना आसन अभ्यासियों के लिए आवश्यक है। अन्यथा लाभ के बदले हानि भी हो सकती है।

नये व्यक्तियों को पहले साधारण व सुगम आसनों का अभ्यास करना चाहिए। बाद में उत्तरोत्तर अभ्यास सिद्ध होने पर क्रमानुसार कठिन आसनों का भी अभ्यास किया जा सकता है। किंतु कभी भी जल्दीबाजी में आसनों का अभ्यास नहीं किया जाता। ऐसा करने से हानि हो सकती है। केवल पुस्तकों में पढ़कर आसन नहीं करना चाहिए, इसके लिए किसी कुशल मार्गदर्शक का होना आवश्यक है।

प्रारंभिक अवस्था में योगाभ्यासियों को आसनाभ्यास आरंभ करने के दो-चार दिन तक मांस-पेशियों में तनाव व जोड़ों पर दर्द की अनुभूति होती है, किन्तु इनसे घबराना नहीं चाहिए। अभ्यास जारी रखने पर ये बाधाएं स्वतः समाप्त हो जाती हैं।

मार्गदर्शक के निर्देश के अनुसार ही कुंभक-रेचक आदि का आसनों में पालन करना चाहिए, क्योंकि सब आसनों के लिए यह विधान निर्धारित हैं कि किस आसन की किस अवस्था में कुभक-रेचक किया जाता है। सामान्य आसनों में स्वांसों को सहज रखने का नियम है। आसनों के अभ्यास के दौरान आने वाले पसीने को पोंछ लेने से शरीर में एक नयी स्फूर्ति आ जाती है।

आसनों के अभ्यास के अंतिम चरण में ८-१० मिनट शवासन का अभ्यास अवश्य करना चाहिए। इससे योग साधक को काफी आराम व नयी स्फूर्ति मिलती है। आसनों के अभ्यास से योग साधक के शारीरिक स्वास्थ्य, मानसिक शांति व आध्यात्मिक विकास का मार्ग प्रशस्त होता है। कुछ रोगों के उपचार में भी ये उपयोगी होते हो। स्वस्थ व्यक्ति की तबीयत भी इनसे सही रहती है। आसनों के नियमित अभ्यास से मन-मस्तिष्क शांत व निर्मल रहता है।

आसनों के अभ्यास से शरीर के जोड़ों, पेट, यकृत, फेफड े, हृदय व मस्तिष्क आदि में रक्त का संचार यथेष्ठ होने लगता है। इनसे मांसपेशियां भी स्वस्थ व सुडौल बनती हैं। आसन करने से शरीर के हर अंग और हर तंतु में सक्रियता आ जाती है और वे रोगों से लड ने की अपनी क्षमता बढ ा लेते हो। शरीर के हर अंगों के सक्रिय होने से शरीर में आवश्यक लचीलापन बढ ता है। हडि्‌डयां और उनके जोड ों की जकड न दूर होती है। सुषुम्ना आदि नाडि यां सक्रिय होकर योग साधक के मानसिक व आध्यात्मिक विकास में सहायक होती हैं। आसनों के अभ्यास से हमारे शरीर में स्थिति विभिन्न ग्रंथियां भी प्रभावित होती हैं। शरीर के विभिन्न भागों में स्थित इन ग्रंथियों से समय-समय पर एक विशिष्ट द्रव का स्राव होता है जिनसे हमारे शरीर, मन एवं चेतना केन्द्र प्रभावित होते हो। इस प्रकार आसनों का अभ्यास हमारे पूरे व्यक्तित्व को प्रभावित करता है और यह हर वर्ग के मनुष्य के लिए लाभकारी है।

सर्वप्रथम हम कुछ सरल आसनों का उल्लेख करते हो, जिनके अभ्यास से योगसाधकों का शरीर व मन स्वस्थ रहे और इस प्रकार वे अपने परम लक्ष्य स्वरूपस्थिति का संधान बड़ी आसानी से कर सकते हो। हमारे महर्षियों ने योग साधकों के लौकिक व पारलौकिक विकास में विशेष रूप से उपयोगी तथा तरह-तरह की व्याधियों से मुक्ति दिलाने में सहयोगी कुछ सरल आसनों का उल्लेख किया है। इसलिए पहले हम उन्हीं आसनों की चर्चा करते हुए बाद में अन्य आसनों का उल्लेख करेंगे। इस सन्दर्भ में एक बात याद रखनी चाहिए कि आसनों की विशेषता को इंगित करने के लिए जिन रोगों का उल्लेख आसनों के नामों के प्रारंभ में किया गया है, वे आसन मात्र उन्हीं रोगों के निवारण हेतु नहीं हैं बल्कि उनके अलावा भी कई प्रकार के लाभ होते हैं जिनका विवरण यथास्थान कर दिया गया है।

१. मर्कटासन (१) - मर्कटासन करने के लिए सर्वप्रथम कंबल बिछाकर उस पर चित्त लेट जाएं और दोनों हाथों की हथेलियां ऊपर की ओर खुली रहें फिर दोनों पैरों को मोड़कर नितम्ब के पास रखें। फिर बायां घुटना दाएं घुटने पर टिका दें। उसके बाद दाएं पैर की एड ी बाएं पैर की एड ी पर टिका दें। अपनी गर्दन को बाईं ओर घुमाकर रखें। इसे मर्कटासन की पहली स्थिति कहते हैं।

२. मर्कटासन (२) - मर्कटासन की दूसरी स्थिति के लिए सर्वप्रथम पहली स्थिति की तरह चित्त लेंटे और घुटनों को मोड़कर नितम्ब के पास ले आयें। पैरों में डेढ फुटा का अंतर रहना चाहिए। फिर दाएं घुटने को झुकाते हुए भूमि पर टिका दें। उसे इतना झुकायें कि बायां घुटना दाएं पंजे के पास पहुंच जाये तथा बाएं घुटने के पास भूमि पर टिका दें। इस आसन में गर्दन को बायीं ओर घुमाकर रखा जाता है। इसी तरह दूसरे पैर से भी इस आसन को करें। यह मर्कटासन की दूसरी स्थिति कही जाती है।