Weight Loss Program

दीपावली-ज्ञानोत्सव है!

दीपों का यह त्योहार अपने साथ काफी विशेषताएं लिये हुए हैं। यह एक राष्टï्रीय स्तर पर मनाया जाने वाला त्योहार हैं। इनके दामन में मानव मात्र के लिए महान संदेश छिपा हुआ है। हम इसके उस विशेषता पर चर्चा करने से पहले इससे संबोधित पौराणिक कथाओं पर भी एक सरसरी निगाह डालते हैं।

ऐसी कथा आती है कि रावण पर विजय प्राप्त करने के बाद प्रभु श्री रामचंद्र जी जब अयोध्या घर में घी के दीपक जलाये गये। पूरी अयोध्या नगरी को दीपों से सजाया गया। लोग नाना तरह से अपनी खुशियों का इजहार कर रहे थे। उन्होंने भगवान राम की आरती उतारी। और सारा नगर श्री राम के जय-जयकार से गूंज उठा।

इसके अलावा लोगों ने सीता को दिव्य गुणों से संपन्न और उन्हें लक्ष्मी स्वरूप जानकर उनकी भी पूजा की। आगे चलकर इस अवसर की याद ताजा रखने के लिए हर वर्ष इसे एक उत्सव के रूप में मनाये जाने की परंपरा शुरु हो गयी। कालक्रम से लोगों द्वारा इस दिन अपने घरों को रंग-बिरंगी रोशनी से जगमगाने, लक्ष्मी पूजन करने और आशिबाजियों का सिलसिला प्रारंभ हो गया जो अब भी जारी है।

दीपावली पर्व के दिन हर आस्थावान हिन्दु अपने-अपने घरों में सुख-समृद्घि की देवी लक्ष्मी की छोटी-बड़ी प्रतिमा स्थापित कर बड़े भक्ति भाव से पूजा करता है। व्यवसायी समाज तो विशेष रूप से अपने व्यवसाय को सुचारु रूप से चलाने और उससे अधिकाधिक धनोपार्जन करने हेतु धन लक्ष्मी की पूजा किया करते हैं। व्यवसायी इसे अपने व्यवसाय का नया वर्ष (वर्ष का प्रथम दिन) भी मानता है। वह इस प्रयास का लेन-देन बराबर हो। और इसे नये रूप में वह अपने व्यवसाय को पुन: प्रारंभ करें।

परंतु इसके साथ ही इस पर्व के अवसर पर कुछ अज्ञानजनित बुराइयां भी प्रचलित हो गयीं जिसके कारण व्यक्ति, समाज और राष्टï्र को दिवाली से बजाय लाभ के नुकसान ही होता है। इस दिन कुछ अश्रद्वालु और नासमझ लोग जुआ, मद्यपान, बड़े-बड़े बम पटाखों का विस्फोट आदि करने की हरकतों से भी बाज नहीं आते। इससे उनका अपना दिवाला तो होता ही है वे समाज की शांति व्यवस्था में भी खलल पैदा करते हैं। हमें इन कुप्रथाओं से बचना चाहिए। ये गलत प्रथाएं दीपावली की गरिमा को धूमिल करती हैं। इनके कारण दीपावली पर्व में निहित दिव्य संदेश, आलोचकों की छींटाकसी के आवरण में छिप जाते हैं।

इस पर्व की वास्तविक महिमा, इस पर्व को प्रचलित करने वाले ऋषियों के मर्म को समझने के लिए हमें कुछ मूलभूत बातों पर विचार करना होगा। ताकि सच्चे अर्थों में हम इस पर्व को मना सकें। इस संबंध में पहली बात तो यह है कि यह पर्व कंगालों का नहीं अमीरों का है। केवल धनी लोग ही इस पर्व को मना सकते हैं। जैसा कि संतों ने कहा है कि अगर मनुष्य के पास विवेक नहीं है तो वह धन का सदुपयोग नहीं कर सकता। इसलिए धन प्राप्ति से पहले नहीं तो कम से कम उसके साथ-साथ हमें विवेक की प्राप्ति अवश्य करनी चाहिए।

अब प्रश्न उठता है कि वह विवेक कैसे प्राप्त हो? क्या विवेक भौतिक विद्वता या बुद्घिमानी है कि हम उसे अपने बल-बूते से कुछ पठन-पाठन करके या चर्चा करके प्राप्त कर लेंगे? नहीं, इसके लिए तो हमें एक मात्र सत्संग का ही सहारा लेना होगा।

क्योंकि जब कभी भी, जहां कहीं भी और जिस किसी को भी विवेक आदि गुणों और महानताओं की प्राप्ति हुई, उसका आधार सत्संग ही रहा है। गोस्वामी तुलसीदास जी कहते हैं-

मति कीरति गति भूति भलाई।

जब जेहिं जहां जेहिं पाई॥

सो जानव सत्संग प्रभाऊ।

लोकहुं वेद न आन उपाऊ॥

अत: हमें सत्संग श्रवण करना चाहिए क्योंकि वही विवेक का स्रोत है। सत्संग को ज्ञान गंगा की उपमा दी गयी है जो समय के तत्वज्ञानी महापुरुष के श्री चरणों से निकली मानी जाती है। इस ज्ञान गंगा में नहाने से मनुष्य की चित्तवृत्ति शुद्घ हो जाती है और उसे विवेक की प्राप्ति होती है। यथा-

मज्जन फल पेखिअ ततकाला।

काक होहिं पिक बकउ मराला॥

एक विवेक प्राप्त मनुष्य को यह बताने की जरूरत नहीं होती कि वह अपने धन, समय और शक्ति का उपयोग कैसे करें। अर्थात वह सदैव उनका सत्कार्यों में ही उपयोग करता है। जिससे स्वयं का, उसके समाज और राष्टï्र तथा समस्त विश्व का भला होता है।

अत: आज भी सदा की भांति हमारे बीच में ज्ञान के स्रोत ज्ञानदाता गुरु महाराज जी मौजूद हैं तो हम सर्वप्रथम अपने घट (हृदय) को उनके ज्ञानदीप से सजायें। तत्पश्चात संसार के कोने-कोने में, बिना किसी भेदभाव के हर मानव हृदय में इस ज्ञान का दीप जलाये जाने का मार्ग प्रशस्त करने के ्िरपुनीत कार्य में सहयोगी बनें। सच पूछिये तो ज्ञानोत्सव ही वास्तविक दिवाली है जो हर रोज और सदा सर्वदा की दिवाली है। कहा भी है-

सदा दिवाली संत की, तीसों दिन त्योहार।

अत: वास्तविक दिवाली मनाने के लिए हमें किसी खास चीज का इंतजार नहीं करना है बल्कि हमें गुरु महाराज जी द्वारा सुसंपन्न होने वाले ज्ञानोत्सव में बिना संकोच, भय और भेदभाव के भाग लेना है। तभी हम जाने-अनजाने होने वाली बुराइयों से ऊपर उठकर अपने दुर्लभ जीवन का भरपूर आनंद ले पायेंगे।