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पानी बचाओ महाअभियान

आइए परमपूज्य श्री श्री1008 महामंडलेश्वर परमहंस दाती जी महाराज द्वारा पानी बचाओ महाअभियान में भागीदार बने-------------------
पानी के महत्व को समझे और लोगों तक यह संदेश पहुंचाए.....
आइए सब मिलकर पानी बचाएं.....
भले विज्ञान ने तरक्की कर ली है, लोगों ने हर स्तर पर सफलता को पा लिया है पर पानी के उपयोग को लेकर मानव अभी तक सतर्क नहीं है। यदि मनुष्स इस प्रकार अंजान बना रहा तो वह दिन दूर नहीं जब एक बूंद पानी के लिए उसे संघर्ष करना पड़ेगा। अत: समय की गंभीरता को मनुष्य को समझना चाहिए और जल संरक्षण के लिए कदम उठाना चाहिए।
यदि पानी को व्यर्थ बहाया गया व बर्बाद किया गया तो वह दिन दूर नहीं होगा जब मानव एक बूंद जल के लिए भी तरस जाएगा। आजके आधुनिक युग में नयी तकनीक है, नये तरीके उपलब्ध हैं परंतु लापरवाही पूर्वक पानी का सदुपयोग करना मनुष्य के सामान्य जीवन की सभी आदतों में शामिल नहीं है। मानव अपने सुख के लिए जल का प्रयोग मन चाहे ढंग से कर रहा है। इसीलिए पानी की कमी को देखते हुए यह आवश्यक हो गया है कि आज का मानव जागरूक हो जाए, उसे पूर्ण जानकारी उपलब्ध हो। इसीलिए आवश्यक है कि मनुष्य पानी के महत्व को समझें और दूसरे लोगों को भी जागृत करें। जल जीवन है, जल जीवन का महत्वपूर्ण हिस्सा है, बिना जल जीवन संभव नहीं है।
पानी के महत्व का संदेश उन्हीं लोगों के द्वारा पहुंचाया जा सकता है जो साल में बारह महीनों पानी की समस्या से जूझते रहते हैं। अधिकतर पानी का अभाव गर्मियों में होता है। लोग लंबी कतारों में धूप में लाइन लगाकर खड़े दिखाई मिलते हैं। ऐसे समय में पानी के सदुपयोग और महत्व को समझाना आवश्यक है। परिवार का हर सदस्य पानी के लिए जूझता दिखाई देता है।
यदि पानी की एक बाल्टी से काम किया जा सकता है वहां दो बाल्टी पानी का उपयोग होता है। अधिकतर लोगों की यही सोच रहती है। कि एक दो बाल्टी ओर खर्च हो जाए तो क्या है? लेकिन वे यह नहीं जानते यदि प्यास लगी हो तो पूरे गिलास पानी की जगह यदि आधा गिलास दिया जाये तो व्यक्ति की स्थिति कटे पक्षी की तरह हो जाती है। गर्मियों मेें अधिकांश जलाशयों में पानी सूख जाता है, बोरिंग काम करना बंद कर देता है। एक बाल्टी पानी लाने के लिए उसे दूर तक जाना पड़ता है। शहरों की अपेक्षा ग्रामीण क्षेत्रों में इस तरह की समस्याओं का अधिक सामना करना पड़ता है। नगरों के अधिकांश लोग बोरिंग के पानी पर निर्भर रहते हैं। गर्मियों में पानी का अधिक वाष्पीकरण होता है जिसके फलस्वरूप जल स्तर नीचे चला जाता है जिसके कारण हैंडपंप कार्य करना बंद कर देते हैं। यदि किसी हैंडपंप से पानी आता है तो वह दूषित होता है। गर्मियों में कूलर चलने से पानी बर्बाद हो जाता है। लेकिन इसका निराकरण संभव है अगर मनुष्य अपनी जरूरतों को समेटकर कम से कम मात्रा में पानी का उपयोग करे। भूजल स्तर के संरक्षण के लिए सशक्त कदम उठाने की आवश्यकता है। मनुष्य को चाहिए वह सभी नागरिकों को जागरुक बनाये। दूसरे लोगों को पानी के महत्व को समझाये। अधिकतर देखने में आता है आवासीय, कालोनियों में नल खुले पड़े रहते हैं। जिससे पानी को बेहद बर्बादी होती है। जिस पर सख्ती से प्रतिबंध लगाए जाने की आवश्यकता है।
आजकल जल की कमी से जल के नाम पर कालाबाजारी पर रोक लगाए जाने की आवश्यकता है। इन छोटी बातों पर यदि सामान्य जन ध्यान दे तो काफी हद तक जल का संरक्षण किया जा सकता है।
वर्षा का जल सौ प्रतिशत शुद्घ होता है।
वर्षा के जल संरक्षण को बढ़ावा दिया जाना चाहिए।
1. छत से प्राप्त होने वाला वर्षा जल अल्प स्त्रोतों से प्राप्त होने वाले जल की तुलना में श्रेष्ठï होता है। वर्षा का जल हर तरह के घातक लोगों से मुक्त होता है। वर्षा का जल हानिकारक बैक्टीरिया से मुक्त होता है। वर्षा जल की क्कद्ध वेल्यू 6.95 होता है। जो आदर्श मानी जाती है।
2. एक टॉप रेन वाटर के माध्यम से बोर, टयूबवेल के पानी में क्लोराइड, फ्लोराइड, सल्फ् र एवं कैल्शियाम की तीव्रता कम होती है। परिणामस्वरूप बोर, टयूबवेल का पानी खारे से मीठे में बदल जाता है।
3. एक टॉप रेन वाटर हार्वेस्टिंग के जरिये अच्छी बारिश के दौरान 7 से 20 लाख लीटर पानी अपने बोर, टयूबवेल या अन्य स्त्रोतो में उतारा जा सकता है। यदि इतनी मात्रा का सदुपयोग किया जाये तो वह पूरे वर्ष भर के लिए पर्याप्त होता है।
4. वर्षा जल को घर में सम्पवेल, टयूबवेल, बोर, कुँए, बावड़ी, हैंडपंप के द्वारा उपयोग में लाया जाना चाहिए।
5. यदि सम्पवेल, टयूबवेल, बोर इत्यादि नहीं उपलब्ध है तो वर्षा जल को रिचार्जिंग पिट के माध्यम से जमीन में उतारा जा सकता है।
रिचार्जिंग पिट क्या है?
इसके तहत एक मामूली गड्ढïा खोया जाता है। जिसे मिट्टïी, रोड़े व रेत से भर दिया जाता है, जो कि आपमें फिल्टर का काम करता है एवं इसका छनकर पानी जमीन में उतर जाता है। यह तकनीक महंगी है। यह प्रणाली ग्रामीण क्षेत्रों में नहीं अपनाई जा सकती।
सावधानियां:-
1. मौसम में शुरुआती दो दिन की बारिश अपने साथ वातावरण में विद्यमान धूल के कण लेकर आती है। अत: प्रथम दो दिन का वर्षा का जल टयूबवेल व सम्पवेल में एकत्रित नहीं करना चाहिए। वाल्व खोलकर संपूर्ण जल को बहा देना चाहिए।
2. बरसात के दौरान छत को साफ रखें। छत पर लोहे की जंग लगने वाली वस्तुएं  न रखें।
3. प्रत्येक घर में रेन वाटर हार्वेस्टिंग को अपनाएं।
1. प्रथम प्रणाली:- जमीन में जल स्तर को बढ़ाने के लिए गड्ढïा बनायें
एक हजार वर्ग फीट की छत वाले छोटे मकानों के लिए यह सरल तरीका बहुत ही उपयुक्त है। मानसून में एक छोटी छत में लगभग एक लाख लीटर जल जमीन में उतारा जा सकता है। यह गड्ढïा गोलाकार, वर्गाकार व आयाताकार हो सकता है।
यह गड्ढïा 3 से 5 फीट चौउ़ा और 6 से 10 फीट गहरा बनाया जाता है। खुदाई के बाद इसमें कंकड़, रोड़ी और बजरी भर दी जाती है और ऊपर से मोटी रेत डाल दी जाती है।
छत को अच्छी तरह से साफ करके पूरा पानी एक पाइप के नीचे उतारा जाता है जो कि गड्ढïे में जोड़ दिया जाता है। इस विधि में आवश्यक है कि पहली एक दो बरसात का पानी नहीं उतारा जाए।
दूसरा तरीका- खाई बनाकर रीचार्ज करना।
यह तरीका दो से तीन हजार वर्ग फीट की छत वाले मकानों पर उपयुक्त है। यह तरीका तभी सफल है जब उथली गहराई पर पर्याप्त मोटाइै की मिट्टïी की ऐसी तह उपलब्ध होती है, जिसमें से पानी नीचे उतर सके। इस प्रणाली में मकान के आसपास 3 से 5 फीट गहरी एवं लगभग 10 फीट चौड़ी एक नाली खोदी जाती है, जिसमें कंकड़ और रोड़ी भर दी जाती है। छतों पर लगें पाइप को नाली से जोड़ दिया जाता है। इस पद्घति का उपयोग स्कूल, कालेजों के खेल मैदान, सडक़ के किनारों और बगीचों में किया जा सकता है।
तीसरी प्रणाली- कुंओं में पानी उतारना।
ग्रामीण क्षेत्रों में घर के अंदर या बाहर वाले कुओं को फिर से भरने के तरीको का इस्तेमाल करना चाहिए। कुंओं के तल तथा उसकी दीवारों को पूरी तरह साफ कर लेना चाहिए, उस पर ढक्कन लगाने का बंदोबस्त करना चाहिए। घर की छत से पाइप लाइन उतारकर उसे सीधे कुएं की तली तक ले जाना चाहिए। वर्षा के दिनों में कुओं को भरना चाहिए।
सावधानियां:-
1. प्रारंभिक वषा्र्र के पहले और दूसरे दिन कु एं को न भरे।
2. कुओं को ढककर रखें।
3. जीवाणुनाशक दवाईयां व क्लोरीन कुंओं में हमेशा डाले।
चौथा तरीका:- टयूबवेल में पानी उतारतना।
यह पद्घति पंद्रह सौ से पच्चीस वर्ग फीट छत वाले मकानों के लिए उपयुक्त है। छत पर बरसात में इक_ïा किया गया पानी हैंडपंप या टयूबवेल तक लगभग ढाई इंच 75 द्वद्व व्यास वाले पाइप द्वारा पहुंचाया जाता है। पाइप को टयूबवेल से जोडऩे के पहले एक फिल्टर का उपयोग करना अत्यंत आवश्यक है। फिल्टर पी. वी. सी. पाइप का बना होना चाहिए। छत यदि 1500 वर्गफीट से कम हो तो फिल्टर 6 इंच व्यास का और इससे अधिक हो तो 8 इंच व्यास का होना चाहिए, इसकी लंबाई 3 से 4 फीट होती है। यह तीन भाग में विभाजित होता है, बीच में पी. वी. सी. की जाली लगी होती है तथा तीनों खंड़ों में विभिन्न साइज के कंकड़ रहते हैं। इस पद्घति में कोई अधिक खर्च नहीं होता है। 2 से 3 हजार के बीच में इसका निर्माण कराया जा सकता है।
भूमिगत जल स्तर अब खतरे के निशान को भी पार कर गया है। 200 से 300 फीट गहराई तो मामूली बात हो गई है। 1,000 फीट गहराई तक टयूबवेल खुदने लगे हैं। वह भी गर्मियों में सूख जाते हैं। अतएव आवश्यक है कि घर या घर के आस-पास टयूबवेल को इस पद्घति द्वारा रीचार्ज किया जाए।
सावधानी:-
1. पहली एक दो बरसात का पानी टयूबवेल में संचित न करें। उसे बहा देना चाहिए।
पांचवी प्रणाली:- बड़े भवनों के टयूबवेल को रीजार्च करना।
सरकारी, गैर सरकारी एवं उद्योागों में बड़े-बड़े भवनों की छतों पर बरसातों में लाखो लीटर पानी एकत्रित होता है। जो नालियों में बह जाता है। इन छतों पर अलग-अलग स्थानों से बरसातों का पानी पी. वी. सी. पाइपों द्वारा अलग-अलग कलेक् शन चेंबर में लाकर एक फिल्टर पिट में डाला जाता है। फिटर पिट में डाला जाता है। फिल्टर पिट दो भागों में बंटा होता है पहले भाग में गिट्टïी, बजरी, कोयाला एवं रेत भरी होती है, हर एक तरह जाली द्वारा अलग-अलग रखी जाती है। बरसात का पानी इस फिल्टर से छानकर पिट के दूसरे भाग में चला जाता है, वहां से सीधा इसे पाइपों की ढलान में रखा जाता है ताकि पानी रुके नहीं।
सावधानियां:-
1. ध्यान रखें कि पहली बरसात का एक-दो बार का पानी टयूबवेल के अंदर उतारने के बदले बहा देना चाहिए।
2. इस पद्घति के उपयोग के लिए विशेषज्ञों की मदद लेनी चाहिए।
छठा तरीका- रीचार्ज शाफ्ट
शाफ्ट हाथ से व मशीन से खोदी जा सकती है। शाफ्ट को कंकड़, बजरी और साफ की हुई रेत से भरना चाहिए। इस शाफ्ट का निर्माण भवनों से 30 से 50 फीट की दूरी पर करना चाहिए। शाफ्ट के ऊपर की रेत की परत को हटाकर नियमित रूप से साफ कर दोबारा भरना चाहिए।
दाती जी महाराज द्वारा पानी बचाओ महाअभियान के अंतर्गत समाज में जागरूकता पैदा करने के लिए बढ़ते कदम-----------------
प्रति माह श्री परमहंस दाती जी महाराज द्वारा ग्रामीण क्षेत्रों में कैंप लगाये जाती है। जिसके माध्यम से ग्रामीणों को पानी संरक्षण की विधियों द्वारा अवगत कराया जाता है।
राजस्थान पाली जिले के अधिकतर ग्रामों में दाती का जल बचाओ अभियान जारी है। जिसके अंतर्गत राजोला, सुराएता, गागूरा, रूपावास, बड़ागुड़ा, सारन, वोपारी, कंटालिया, बगड़ी, चाढ़वास, धांगड़वास, वीरावास, हींगावास, मालपुरिया, भटिंडा, राजोला, लानेरा, पांचवाखुर्द, चौपड़ा आदि गांव शामिल है।
दाती अभियान जल बचाओ के अंतर्गत लोगों की वीडिय़ों क्लिप, बैनरस, पोस्टर्स द्वारा समय-समय पर जानकारियां दी जाती है व जल संचय के नवीन प्रणाली व विधियों के बारे में अवगत कराया जाता है।water-footprint