Weight Loss Program

वह 'मैं’ क्या है?

जब-जब भी मानव के सामने अज्ञानता का अंधकार छा जाता है, लक्ष्य विहीन मानव भटकने लगता है तथा दर-दर की ठोकरें खाते-खाते अशांत व दुखी होकर, निस्सहाय होकर, आंतरिक वेदना से त्रस्त हो जाता है, तब-तब समय पर महापुरुष आकर, ज्ञानलोक द्वारा मार्ग-दर्शन करके मानव समाज की सहायता करते रहे हैं। देश, काल व परिस्थिति के अनुसार भले ही उनके ज्ञान प्रचार के तौर-तरीके बदल जाया करते हों लेकिन ज्ञान तो सनातन व सत्य हैं, वह कभी नहीं बदलता, क्योंकि सत्य एक है।

वैसे तो मनुष्य को सृष्टिï का सर्वोपरि कृति कहा गया है, लेकिन फिर भी वह अज्ञानता का शिकार हो ही जाता है। उसके बुद्घि व विवेक पर कालिमा आ ही जाती है। अत: वह अपने जीवन के लक्ष्य को भूल कर दिशा विहीन अंधी दौड़ की तरह अपने अमूल्य जीवन को भी व्यर्थ व्यतीत करने लगता है। फलत: अन्य प्राणियों जैसे- पशु-पक्षी, कीड़े-मकोड़े आदि के जीवन में और मनुष्य के जीवन में फिर कोई अंतर नहीं रह जाता। क्योंकि अन्य जीवों का भी जीवन का उद्देश्य खाना, पीना, आवास आदि की व्यवस्था करना तथा अपने जीवन को 'येन केन प्रकारेणÓ व्यतीत करना रहता है। यदि मनुष्य भी इतना ही करे तो फिर उसके जीवन में और अन्य प्राणियों के जीवन में अंतर ही क्या है?

अत: इसी समझदारी की जरूरत होती है कि वह इस बात पर विचार करें कि उसे यह अमूल्य जीवन क्यों मिला है? इस विषय पर मात्र मनुष्य ही सोच सकता है, अन्य जीव नहीं। अत: उसके जीवन में मार्ग-दर्शक की जरूरत होती है।

बिना मार्ग-दर्शक (मास्टर) के मनुष्य को ज्ञान की बात समझ पाना आसान नहीं है। क्योंकि वक कृप-मण्डूक की तरह अपने सीमित दायरों में जकड़ा हुआ होता है। उसे यह भी विवेक नहीं रहता कि जिस कारण मैं जी रहा हूं, वह शक्ति तो मुझमें ही है। जिस सत्ता के कारण यह जीवन है। जिसके कारण मेरा अस्तित्व है। जिसके कारण यह कह सकने में सक्षम हैं कि- मैं हूं, मेरा परिवार, मेरा समाज, मेरा देश, मेरा धर्म, मेरा ईश्वर आदि-आदि है। वह मैं क्या है? जिसके कारण इस सारे संसार के अस्तित्व का, जीवन का दुख-सुख का अनुभव हो रहा है। संसार के सभी विषयों के संबंध में, हर क्षेत्र का ज्ञान हासिल करने में हम सक्षम है। अत: ज्ञान शब्द से यहां तात्पर्य अलग है। एक होता है संसार का बाह्यï ज्ञान तथा दूसरा है- स्वयं का ज्ञान। अपने आप का ज्ञान, अपने जीवन का अनुभव। वह जीवनी ऊर्जा ही सुख-शांति और आनंद का स्रोत है। लेकिन उसे न जानने के कारण ही मनुष्य आंतरिक रूप से अशांत व अतृप्त है। इसीलिए संत कबीर कहते हैं-

पानी में मीन प्यासी,

मोहे सुन-सुन आवे हांसी।

आतम ज्ञान बिना नर भटके,

क्या मथुरा क्या काशी॥

जिस व्यक्ति के जीवन में समय के तत्वदर्शी महापुरुष का सान्निध्य प्राप्त होता है तथा जो उनकी वाणी को ध्यान पूर्वक सुनते हैं, समझते हैं, अमल करके ज्ञानार्जन करते हैं, उन्हें ही मनुष्य जीवन का महत्व समझ में आता है तथा उन्हीं का जीवन धन्य होता है।