Weight Loss Program

भक्तिरस से सराबोर

रविवार का दिन गुरुभक्तों के लिए अति उल्लास से परिपूर्ण था और हो भी न क्यों, क्योंकि लम्बे समय के बाद सदगुरुदेव की कृपा से उनकी छत्र छाया में सत्संग में बैठने का जो एक उपयुक्त अवसर मिला। यही वजह है कि हर गुरु भक्त का चेहरा खिला हुआ था, हर भक्त टकटकी लगाकर अपने सदगुरुदेव महाराज को निहार रहा था। क्योंकि काफी लम्बे अरसे बाद श्री गुरुदेव के चरणों में बैठकर ध्यान व भजन-कीर्तन करने का जो सौभाग्य मिला। गुरुदेव ने ज्ञान की गंगा बहाते हुए सभी भक्तजनों को भक्तिरस से सराबोर कर दिया।

मित्रो, आज मुझे वो दिन याद आ रहा है जब मैं अपने गुरु महाराज जी से पहली बार मिला था तब मुझे क्या अनुभूति हुई। मेरे गुरु महाराज जी ने मेरे भीतर एक चेतना जगाई। आज मेरे हृदय के तार एक बार फिर से झनकारित हो गये हैं, यादें हरी हो गईं कि कितना पावन आनंद होता है गुरु महाराज की छाया में रहना, ठीक उसी आनंद के समान जैसे थके हुए राही को छायादार पेड़ के नीचे बैठने से जो राहत मिलती है। अपने आंतरिक अनुभव के बाद जो मैंने सद्ïगुरु के विषय में जाना है, उसे आज मैं आपके समक्ष रखना चाहूंगा।

नामधन लुटाने वाले सदगुरु की महिमा अपार है ...
परमाराध्य, परमदयालु सदगुरुदेव की महिमा अपरंपार है। उनके यथार्थ का वर्णन कर पाना शब्दों की शक्ति से परे है। जिन्हें अपने सदगुरु महाराज की महिमा के यथार्थ का बोध हो चुका है वे उनके स्मरणमात्र से ही प्रसन्नचित्त हो जायेंगे। मन में शिथिलता की लहर आ जायेगी। मन में संतोष की भावना पैदा होने लगेगी। अकेलापन मिट जायेगा। परमात्मा में मन लीन हो जायेगा। परेशानियों का अंत हो जायेगा। सदगुरु की महत्ता और अपनी अधमता का ध्यान आते ही साधक द्वारा किये गये बुरे क र्मों पर उसे शर्म आने लगती है। साधक सदा अपने रोम-रोम में सदगुरुदेव की दया, उनकी महिमा का अनुभव तो करता है परंतु उसे व्यक्त नहीं कर सकता। जंग लगे हुए लोहे के टुकड़े के पास शब्द कहां है, जब उसे पारस क ा स्पर्श मिल जाता है तब वह पारस की महिमा का वर्णन कैसे करें? यदि वह बहुत प्रयत्न करेगा भी तो अधिक से अधिक यही भाव व्यक्त कर पाएगा कि-

सब धरती कागद करू लेखनि सब बनराय।

सात समुँद की मसि करूं गुरु गुन लिख्यो न जाय॥

इसीलिए तो वेदों ने सदगुरुरूपी ब्रह्मï की महिमा कहते-कहते थककर नेति-नेति कह दिया। पांच मुखों वाले शिवजी, हजार मुखों वाले शेषनागजी, स्वयं वाणीरूपी सरस्वतीजी, कवि शुक्राचार्य, नारद, व्यास आदि महामनीषी ज्ञानी भक्तगण भी निरन्तर गान क रके सदगुरु महिमा का यथावत्ï वर्णन नहीं कर पाए।

मन को शांत करने का एक मात्र साधन है सदगुरु महाराज द्वारा बतायी गई उक्ति का सहारा लें। प्रभु के नाम का भजन-सुमिरन करें, इससे मन में उत्पन्न हुई द्वंद्वता से छुटकारा मिलेगा। यह संसार झूठा और नश्वर है केवल प्रभु के नाम का भजन-सुमिरन ही अविनाशी है। वह अविनाशी ज्ञान सच्चे सदगुरु से ही मिलता है।

सदगुरु क ा नाम कोई जपा जाने वाला नाम नहीं है। यह अजपा जाप है, जिसे आत्मा अपने भीतर सुनती है और देखती है। जिह्वïा द्वारा बोलकर जपे जाने वाले नाम अनेक है, परन्तु मुक्ति देनेवाला सच्चा शक्तिशाली नाम एक ही है, वह अनादि है और प्रत्येक जीव के भीतर विद्यमान है। यही सच्चा नाम है, इसके बिना सभी साधनायें उसी प्रकार व्यर्थ हैं जैसे सेमर के फूल का सेवन, अन्नहीन भूसी का कूटना या लोभी का धर्म है। सदगुरु के नाम का सुमिरन संसार के प्रत्येक पदार्थों से उत्तम है। संसार में प्रत्येक वस्तु का सार सदगुरु का नाम, सुमिरन, भजन और भक्ति है।

संसारी भोग और सुख क्षणभंगुर और नाशवान हैं। सदगुरु के नाम क े सुमिरन से प्राप्त सुख सुखकारी है, मंगलमय है, अविनाशी है, कल्याणकारी है। सदगुरु नाम सुमिरन वह तलवार है जो जीव के सभी भय काट देती है। सदगुरु सुमिरन साधक को वो शक्ति प्रदान करता है जिसके प्रभाव से वह निर्भय विचरण करता है।