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मंत्र -दीक्षा की अहमियत..

मंत्र -दीक्षा की अहमियत..

हमारे प्राचीन मनीषियों ने बिना किसी पूर्व तैयारी के एकाएक मंत्र साधना में कूद पड़ने की इजाजत नहीं दी है। उसके पहले किसी अनुभवी मार्गदर्षक द्वारा विधिवत दीक्षा ग्रहण कर उसके द्वारा बतायी गयी विधियों का अनुसरण करना आवषयक बताया गया है।

जिज्ञासु मंत्र-साधको को सर्वप्रथम समय के मार्गदर्षक से मंत्र- दीक्षा लेने के साथ मंत्र के विनियोग और न्यासों की जानकारी हासिल करनी होती है जिनके माध्यम से वे अपने षरीर को भी मंत्र-साधना के लिए अपेक्षित परिवेष में सुस्थिर रहने का अभ्यासी बना सकें। देष, काल, पात्र और परिस्थिति भेद से मार्गदर्षक जिज्ञासुओं को आवष्यक यम,  नियम, आसन, बंध, मुद्राओं व प्राणायाम आदि का सहारा लेने का निदेष देता है। कुछ लोग किताबें पढ़कर या दूसरों की देखा-देखी स्वतः मंत्रसाधना के क्षेत्र में कूद पड़ते है। किंतु वैसे लोगों को कभी भी लक्ष्य तक पंहुचते नहीं देखा गया है। अधिकतर लोग लाभ के बदले हानि उठाते है और लक्ष्य भ्रष्ट होकर इधर-उधर भटक जाते है।